कब है संक्रांति? जाने इस दिन से जुड़े इतिहास और इसके महत्व को
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कब है संक्रांति? जाने इस दिन से जुड़े इतिहास और इसके महत्व को

मकर संक्रांति भारत में सबसे महत्वपूर्ण और शुभ त्योहारों में से एक है जिसे हर साल बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

 

Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति भारत में सबसे महत्वपूर्ण और शुभ त्योहारों में से एक है जिसे हर साल बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस साल यानी 2025 में मकर संक्रांति मंगलवार यानी की 14 जनवरी को मनाया जा रहा है। हर साल मकर संक्रांति की दो तिथि निकलती है एक 14 जनवरी और एक 15 जनवरी। लेकिन इस बार 14 जनवरी को मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त 9:03 से शुरू होगी और पूर्णिया काल 5:46 यानी 8 घंटे और 43 मिनट तक रहेगा।

 

क्या है मकर संक्रांति का इतिहास

 

यह त्यौहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है, जो इसकी उत्तर दिशा की यात्रा यानी उत्तरायण की शुरुआत को दर्शाता है। इसे एक बेहद शुभ घटना माना जाता है और यह सकारात्मकता, नवीनीकरण और नई शुरुआत का वादा करता है। मकर संक्रांति की शुरुआत भारत के सांस्कृतिक कृषि और आध्यात्मिक इतिहास में गहराई से स्थापित है। इस त्यौहार के दिन सर्दी अपने दरवाजे पर खड़ी होती है, जो वसंत का स्वागत करने के लिए तैयार होती है जिससे खेती का एक नया चक्र शुरू होता है। यह दिन इस प्रकार किसानों और ग्रामीण क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है और प्रकृति के उपकरणों को मान्यता दी जाती है और आने वाले वर्ष के लिए समृद्धि का आशीर्वाद मांगा जाता है।

 

मकर संक्रांति का पौराणिक कथाओं से है संबंध

 

मकर संक्रांति विभिन्न पौराणिक संबंधों से जुड़ी हुई है। दो सबसे महत्वपूर्ण कहानी है जो त्यौहार के इर्द गिर्द घूमती हैं। जहां भगवान शनि और उनके पिता सूर्य देव के बीच वास्तव में सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं है, वह दोनों मकर संक्रांति पर फिर से मिले इस प्रकार इस मेल में मिलाप ने सद्भाव और संतुलन के साथ-साथ क्षमा का भी संकेत दिया। यह मकर संक्रांति ही थी जिस दिन गंगा अपने पूर्वजों को शुद्ध करने के लिए आई थी जो पुनर्जन्म सफाई आदि का संकेत था। भगवान विष्णु की विजय एक अन्य कहानी सुनाती है, कि मकर संक्रांति भगवान विष्णु की राक्षसों पर विजय और नकारात्मक शक्तियों के अंत का उत्सव है यह बुराई और अच्छाई की शाश्वत जीत है।

 

मकर संक्रांति का महत्व

 

मकर संक्रांति के कई महत्व है। यह वह दिन है जब सूर्य मकर राशि में चला जाता है और उत्तरायण की अवधि शुरू होती है 6 महीने तक इसे बहुत शुभ माना जाता है। क्योंकि माना जाता है कि देवता अपनी नींद से जागते हैं और पृथ्वी को समृद्धि और खुशी का आशीर्वाद देते हैं। तो वहीं दूसरी तरफ फसल के मौसम का अंत भी मकर संक्रांति दर्शाता है। आध्यात्मिक संदर्भ में मकर संक्रांति नवीनीकरण और आत्म चिंतन का दिन है। सूर्य के उत्तर दिशा की यात्रा ज्ञानोदय और अज्ञानता की छाया के निपटान का प्रतीक है। इस दिन व्यक्ति सभी पुराने शिकायतों को अलविदा कहता है और अपने जीवन में सकारात्मक का स्वागत करता है।

 

कई नामों से जानी जाती है मकर संक्रांति

उत्तर भारत में विशेष रूप से पंजाब में इसे एक दिन पहले लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है जो फसल का त्यौहार है जो लोगों को उल्लास के साथ एकजुट करता है। लोकगीत भांगड़ा और गिद्ध जैसे पारंपरिक नृत्य और उत्सव के भोज उत्सव के निशान है। परिवार गुड और तील से बनी मिठाइयां साझा करते हैं, जो एकता और गर्म जोशी का प्रतीक है। तो वहीं तमिलनाडु और दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों में मकर संक्रांति को पोंगल के रूप में माना जाता है और इसे 4 दिनों तक मनाया जाता है। यह एक ऐसा समय है जब भरपूर फसल के लिए सूर्य देव मवेशियों और पृथ्वी को श्रद्धांजलि दी जाती है। पोंगल नामक एक विशेष व्यंजन जैसे ताजा कटे हुए चावल दूध और गुड़ से बनाया जाता है, वह तैयार किया जाता है और देवताओं को चढ़ाया जाता है।